यह शब्द तीन शब्दों से मिलकर बना है,
“आना” यानी “अंदर आती हुई साँस”
पाना यानी बाहर जाती हुई साँस
और सति यानी उसके साथ एक हो जाना।
किस आसान में बैठें ?
किसी भी तरह के विशेष आसान या मुद्रा की कोई ज़रूरत नहीं है, बस एक आरामदायक स्थिति में बैठ जाइये, अपने हाथों और पैरों को क्रॉस कीजिये और आँखों को कोमलता से बंद कर लीजिये। ऐसा करने से शरीर से बाहर प्रवाहित होती हुई ऊर्जा भीतर ही ठहर जाती है। इस स्थिति में आने के बाद अपने पूरे ध्यान को अपनी प्राकृतिक साँसों पर ले आइये और अंदर व् बाहर जाती हुई साँसों को देखना शुरू कीजिये।
मन में अगर विचार उठते हैं तो अपने ध्यान को वापस साँसों पर ले आइये। साँसों के साथ जुड़े रहने से विचार धीरे धीरे कम होने लगते हैं और इसका लगातार अभ्यास करने से मन पूरी तरह शांत हो जाता है।
ध्यान की विधि:
इस ध्यान विधि में अपने पूरे ध्यान को अपनी अंदर आती और बाहर जाती हुई प्राकृतिक साँसों पर केंद्रित रखना होता है। साँसों पर ध्यान केंद्रित करने से हमारे विचार घटने लगते हैं, धीरे धीरे हम विचार शून्य अवस्था में पहुँचते हैं जहाँ विशाल ब्रह्मांडीय ऊर्जा हमारे शरीर में प्रवेश करती है और हमारी नाड़ियों का शुद्धिकरण होता है।
कितने समय और कब करनी चाहिए ?
तो अब सवाल ये कि ध्यान विधि को कैसे, कब और कहाँ किया जा सकता है? क्या किसी ख़ास तरह की मुद्रा या आसन में बैठना होता है?
नहीं, आनापानसति ध्यान एक बहुत ही सहज और सरल ध्यान विधि है, आप इसे कहीं भी और कभी भी कर सकते हैं। आपकी जितनी उम्र है ठीक उतने ही मिनट के ध्यान से शुरुआत करें। आगे चलकर आप इस अवधि को बढ़ा सकते हैं और जितना चाहे उतना ध्यान कर सकते हैं।